Wednesday, 30 September 2020

आख़िर कब तक ?

कुछ लोगो को पढ़ा मैंने.. मनीषा के लिए कौन आवाज़ उठा रहा है कौन नही..इस बात पर मुद्दे बनाये जा रहे है..
लेकिन क्या होगा इनके बोलने से??
क्या बदल जायेगा??
ये बोलेंगें तो क्या रेप होना बंद हो जाएगा?
निर्भया गुनहगारों को फांसी हुई तो क्या रेप होना रुक गया या प्रियंका रेड्डी के गुनहगारों को पुलिसकर्मियों ने सीधे गोली मार दी..तो क्या सबक मिल गया ??
उस माँ से पूछो जो सारी जिंदगी ख़ुद को कोसती रहेगी..क्यों बेटी को जन्म दिया? क्यों जन्म लेते मार नही दिया..कम से कम मेरी बच्ची इस दरिन्दगी से तो बच जाती..
एक पिता की बेबसी, भाई बहनों  के मन का डर..ये जरूर बढेगा..बातें हज़ार होंगी और ख़त्म हो जाएंगी..ऐसी ही निर्भया, प्रियंका, गुड़िया और मनीषा हैवानों के हाथों  नोची जाएंगी..रोयेगा परिवार, न्याय की भीख मांगेगा एक परिवार..
कुछ लोग 2/3 दिन मोमबत्ती लिए चल लेंगे, दो चार सेल्फ़ी लिए घड़ियाली आंसू बहाए सोशल साइट्स पर पोस्ट कर देंगे, लेखनी के धनी लोग लंबी लंबी पोस्ट लिखेंगे, कुछ कविताएं तो कुछ कहानियां बुनी जाएंगी, फिल्में बनेगी, टीवी सीरियल बनेंगे, क्राइम पेट्रोल के एक दो एपिसोड तैयार होंगे..लोग देखेंगे, अदाकारी की तारीफें होंगी और आख़िर में अवार्ड ले कर आगे बढ़ जाएंगे..
रह जायेगा उस बेटी का परिवार..चला जायेगा कुछ साल पीछे..कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाएं, न्याय की भीख मांगते दर दर भटकेंगे..सरकार सत्ता में रहने के लिए कुछ पैसे दे कर इतिश्री कर लेंगी.. हो गया न्याय
यही होगा..सदियों से यही तो होता आया है
ना कल कुछ बदला था ना आज कुछ बदलेगा
..एक मरेगा दूसरा हैवान तैयार हो जाएगा..रक्तबीज की तरह है ऐसे मानसिक विकृति के लोग..ख़त्म नही होंगे..बल्कि एक के बाद एक जन्म लेंगे..
किस सरकार को दोष दें??
कौन है यहाँ दूध का धुला??
निर्भया के समय आप और कांग्रेस सरकार ने क्या किया या मनीषा के लिए भाजपा क्या कर लेंगी.. सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे है..
जो नेता आवाज़ उठाएंगे तो उनका स्वार्थ पहले होगा..
बुद्धिजीवी वर्ग मौसमी होते है, मौसम के हिसाब से कपड़े (सोच) बदलतें हैं..
फ़िर दोषी कौन??
दोषी ढूंढने निकलो तो सब से पहले अपने समाज़ पर नज़र डाल लो..ये सब सरकार की नही हमारे समाज़ की देन है..हम बड़ी आसानी से ऐसे कुकर्म, ऐसी हैवानियत के लिए सरकार नेताओं के मत्थे मढ़ कर ख़ुश हो लेते..3/4 पोस्ट कर देंगे..सोशल मीडिया पर चर्चा कर लेंगे लेकिन इस के जड़ को नष्ट करने के लिए कुछ नही करेंगे..
हमारे समाज़ में शुरू से लड़कियों को दबा कर रखा गया और लड़कों को सिर आंखों पर.. जिनकी सिर्फ़ बेटियां हुई तो पुत्र प्राप्ति के लिए बेटे की दूसरी शादी करा दी जाती थी..और ये आज भी होता है..डर है वंश ख़त्म हो जाएंगा..लड़कियां वंश आगे नही बढ़ाती लेकिन वंश उन्ही की कोख़ में पलता है..कितना हास्यस्पद है ये सोच....यह किस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था हैं?
लड़कियों को बचपन से सहमना सिखाया जाता है..दूसरे घर जाना है, घर की मान मर्यादा तुम्हारी हाथ मे है, बिटिया सबकी सुनना, पति परमेश्वर हैं, सास ससुर की हर आज्ञा का पालन करना तुम्हारा धर्म है? कम और धीमी आवाज़ में बात करनी है, ठहाके मार कर नही मुंह दबा कर हंसना है..
पति अगर नही हैं तो तुम्हें रंग बिरंगे कपड़ो से दूर रहना है, सजने संवरने का हक़ नही है क्योकि इससे पराये पुरूष के नज़रों में आ जाओगी..
इस तरह के कितने नियम पुरूष के लिए निर्धारित किये गए है ??
मुझे नही पता..अगर आप लोगो को पता है तो प्लीज़ मुझें जरूर बताएं..
बेटा गाली दे तो मर्द है, किसी को मार कर आये तो शेर है, लड़की को छेड़े तो..उमर ही ऐसी है, इस उम्र में ऐसा होता है..बेटा तो कुछ भी कर..तू तो वंश है तुम्हारे लिए कोई नियम नही है..एक तो तेरी बहकने की उम्र है दूसरा तू तो मर्द है..
एक लड़की आवाज़ उठाती है तो समाज़ लग जाता है उसके चरित्र की बखिया उधेड़ने ..चरित्रहीन है, लड़को को उंगलियों पर नचाती हैं, सब कुछ कर चुकी है अब चली है सती सावित्री बनने..ये टैग है बोल्ड लड़कियों के लिए
क्या नही लगता ऐसी सामाजिक व्यवस्थाओं में बदलाव लाया जाए..बेटियों को वही हक़ मिले जो बेटों को दिया जाता है..
बेटों को कहा जाय.."संस्कार ही तुम्हारी मर्दानगी हैं"
"लड़कियों को इज़्ज़त देने वाला मेरा शेर पुत्तर"
क्या एक माँ और पिता से यह नही कह सकतें
"उम्र कितनी भी हों बेटा..बहकने औऱ गुनाह करने पर तुम्हें सज़ा दिलाने के लिए हम स्वयं आगे आएंगे"..
सोच बदलने से ही बदलाव आएगा
और सोच को बदलना ही पड़ेगा
पितृसत्तात्मक प्रथा का अंत करना ही होगा
सर्वसामान्य प्रथा का प्रचलन हो
सब वर्ग सामान हो
बेटा बेटी में फ़र्क़ करना बंद करना होगा
तभी कुछ संभव है
ये सिस्टम..ये सरकार...ये नेता इसी समाज़ की देन है..ये नही बदलने वाले
बदलाव का बिगुल हमें बजाना है
बेटी को दुर्गा हमें बनाना होगा
रक्तबीज का संहार दुर्गा के हाथों ही होगा
नही तो तैयार रखों ख़ुद को..रक्तबीज के दूसरे तीसरे रूप के लिए और एक और बेटी की बलि के लिए


अनामिका अनूप
नोएडा



Sunday, 24 May 2020

उम्मीद

उम्मीद: उम्मीद दिन भर का थका हारा सुखिया जैसे ही अपनी झोपड़ी में घुस ही रहा था कि पीछे से आवाज़ आयी “सुखिया, अभी हवेली चल,मुखिया जी के बेटे का जन्मदिन है शहर से बड़े बड़े लोग आ रहे है, बहुत काम है, बाबू …

Thursday, 19 March 2020

एक विनती एक निवेदन आप सभी से कृपया जितना संभव हो घर पर रहे, जहाँ भीड़भाड़ हो वहाँ जाने से बचें, किसी कारणवश अगर आप को बाहर जाना पड़ता है तो लोगो से दूरी बना कर रहे, हर 2 घंटे में हाथ धोए।
आँख, नाक, मुँह छूने से बचे। जब भी बाहर जाए मास्क लगाए एवं ग्लब्स पहने, बाहर से आने के बाद सबसे पहले हाथ धोयें तब ही किसी चीज़ को हाथ लगाए।
घबराए नही थोड़ी एहतियात बरते और साफ़ सफाई का ध्यान रखे तो आप कोरोना को मात दे सकते है, भ्रमित करने वाले सभी मैसेज से बचे अभी तक ऐसी कोई दवा नही बनी जो इस बीमारी से लड़ पाए, आप को अपनी इम्युनिटी पावर को बढ़ाना होगा यही एक ऐसा उपाय है जिस से कोरोना या कोई भी ऐसा वाइरस शरीर पर प्रभाव नही डालता।
हमें प्रकृति से कुछ अनमोल उपहार मिले है जिनको रोजमर्रा अपने खाने पीने में शामिल करते है तो इम्युन सिस्टम को बूस्ट कर सकते है, इसमें अदरक, लहसुन, काली मिर्च, हल्दी, दालचीनी, तुलसी, जायफल मुख्य है...आप इन सभी सामग्रियों को पानी में उबाल कर चाय की तरह पिये, इम्युनिटी तो बढ़ेगी ही साथ ही इंफेक्शन से भी दूर रहेंगे।
अगर हम सतर्कता नही बरतेंगे तो स्थिति और भयावह होती जाएगी, सोचिए अगर ये वाइरस फैलता जाए तो क्या क्या हो सकता है, लोगो को इसके बारे में बताये ये सुरक्षा उनके और उनके परिवार के लिए है, मिलियन्स कमाने वाली बड़ी बड़ी कंपनियां लॉस में  जा रही है, लोग घर से काम करने के लिए मजबूर है, मॉल, सिनेमा, रेस्टोरेंट, होटल्स, दुकानें,स्कूल, कॉलेज आदि सभी बंद कर दिए गए, अगर ये सब कुछ पहले की तरह नॉर्मल नही हुआ तो इसका हमारी अर्थव्यवस्था क्या प्रभाव पड़ेगा??
लोगो की नौकरियां जाएंगी, पैसे नही होंगे तो खाना कहाँ से मिलेंगा, हॉस्पिटल में बेड की कमी होगी तो पेशेंट तो बिना इलाज के ही मौत की मुँह में जाएगा, बच्चो की शिक्षा उनकी सुरक्षा सब कुछ ख़तरे में है, आप को, हम सभी को...पूरे विश्व को इस भयावह स्थिति से बाहर निकालने का प्रयास करना होगा, सरकार हमारी स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए जो भी उचित कार्य है वो कर रही है लेकिन असल ज़िम्मेदारी हमारी है, हमें ध्यान रखना होगा, आसपास लोगो को जागरूक करना होगा..आइए..आह्वान करते है, लोगो को जागरूक करते है, जीवन अमुल्य है आप का जीवन आप के हाथ मे है,अगर अब भी ना संभले तो इटली के बाद हमारा नंबर होगा..साफ़ सफाई का ध्यान रखे, सतर्क रहें और स्वास्थ्य रहे।

अनामिका अनूप तिवारी
नोएडा

Tuesday, 28 August 2018


मेरी सुबह
ट्रिंग ट्रिंग..
उफ़..घडी का ये इरिटेटिंग अलार्म...मुझे सुबह की नींद से उठाने के लिए काफ़ी था, आँखों को मसलते हुए उठी, पांच बज़ रहे थे साढ़े छह बजे बच्चो की बस आ जाती है, इन डेढ़ घंटो में मेरे हाथ मशीन की तरह और दिमाग़ कंप्यूटर की तरह चलते है, जल्दी जल्दी बच्चो को उठाना और एक एक करके तैयार करना, बैग पैक, टिफिन पैक और सबसे बड़ा टेंशन जो हर सुबह होती है आयुष का हर दिन का प्रोजेक्ट वर्क से रिलेटेड सामान जो उसे सुबह स्कूल जाने के वक्त याद आता है "आयुष ये सब तुम मुझे कल नहीं बता सकते, अभी दस मिनट में बस आ जायेगी, कहाँ से लाऊ अब ये सारी चीज़ें" मैंने गुस्सा करते हुए बोला।
" माँ आप जल्दी करो वरना स्कूल में डाट तो मुझे पड़ेंगी" मेरी बातों को अनसुना कर अपनी बातो में मुझे उलझा लिया, किसी तरह सभी सामान इकठ्ठा किया " बच्चे तैयार हो गए, लाओ मैं छोड़ देता हूं बस स्टॉप तक" अखिल कमरे से बाहर निकलते हुए बोले " क्या बात है जनाब, बहुत जल्दी उठ गए थोड़ा और सो लेते, छोड़ने का काम भी मैं कर लुंगी बच्चे तो मेरे अकेले के है तो बच्चो के प्रति सारी जिम्मेदारी भी मेरी हुई ना" मैंने अखिल को ताना मारते हुए कहा ।
सारा और आयुष मेरी बात सुनकर हंसने लगे "अरे तुम लोग हंसो नहीं, माँ इस वक्त माँ नहीं रानी लक्ष्मी बाई है, सुबह सुबह माँ से पंगे नहीं लेते बल्कि माँ की हर बात मानते है" अखिल की बात सुन मैं भी हंस पड़ी।
बच्चो के स्कूल जाने के बाद अब अखिल की बारी थी ऑफिस जाने की।
जल्दी जल्दी नाश्ता और टिफिन तैयार किया और अखिल भी ऑफिस के लिए निकल गए, मैं थक कर चूर हो गयी थी वही सोफे पर निढाल हो गयी तभी घड़ी पर नज़र गयी आठ बज़ रहे थे, मैं चौंक कर उठ बैठी और फ़ोन ढूंढने लगी, फ़ोन तो मिल गया पर उसका फ़ोन नहीं लग रहा था, मन में अज़ीब अज़ीब से ख्याल आने लगे, ऐसा तो कभी नहीं होता   उसका फ़ोन तो हमेशा ऑन रहता है, कुछ मैसेज भी नहीं है, इस समय तो उसे मेरे घर पर आ जाना चाहिए ,अखिल के जाते ही उसके लिए दरवाज़ा खोलती हूं और आज अखिल को ऑफिस गए 20मिनट हो गए और उसका कुछ पता ही नहीं।
फिर फ़ोन मिलाया अभी भी फोन स्वीच ऑफ आ रहा था, " हे भगवान मैं आज लड्डू का भोग लगाउंगी प्लीज़ उसे जल्दी भेज दो" हाथ जोड़ते हुए मैंने कहा, उसके बिना ये सब काम कैसे होगा, कैसे करुँगी मैं ये सभी काम "प्लीज़ भगवान प्लीज भेज दो उसे"
वो एक दिन भी ना आये तो मेरा पूरा दिन ख़राब हो जाता है उसके आते ही जो आत्मिक शांति मुझे मिलती है किसी और से आज तक नहीं मिली चाहे वो अखिल ही क्यों ना हो।
सोचते सोचते साढ़े नौ बज़ गए अब मेरे सब्र का बाँध टूटने वाला था आँखों के कोरे में आंसुओ ने अपनी दस्तक दे दी थी तभी डोर बेल बज़ी सहसा मुझे मेरे कानों पर यकीन नहीं आया तभी फिर बेल की आवाज़ आयी मैंने फोन एक तरफ फेंक कर लगभग भागते हुऐ दरवाज़ा खोला, " क्या मैडम सो गयी थी क्या,कब से घंटी पर घंटी बजा रही हूँ और तुम हो की दरवाज़ा ही नहीं खोल रही, अभी नहीं खोलती तो मैं तो वापस जाने वाली थी" उसकी ये तीखी आवाज़ भी मुझे अभी कर्णप्रिय लग रही थी, मैंने झट से उसे गले से लगा लिया " अरी शांता, नाराज़ क्यों होती है सामान समेट रही थी इसलिए घंटी की आवाज़ नहीं सुनी, चल तू अपना काम ख़त्म कर मैं तेरे लिए अदरक वाली चाय बनाती हूँ'
उसको शांत करते अपनी ख़ुशी छुपाते हुए मैंने कहा।
लेखिका
अनामिका अनूप तिवारी

हम सब अपने चेहरे को खूबसूरत रखने के लिए तमाम जतन करते है, महंगे से महंगे सौंदर्य प्रसाधन का इस्तेमाल करते है जिस से हमारी त्वचा मखमली मुलायम और चमकदार हो, क्या कभी ऐसा ख्याल आया कि काश कोई ऐसी क्रीम आती जिस से हमारा दिल खूबसूरत, मखमली और चमकदार बन जाए? दिल को खूबसूरत बनाने के लिए कोई पैसे नहीं लगते बस निस्वार्थ प्रेम, दया, करुणा, दुसरो के प्रति प्रेम और इज़्ज़त की भावना चाहिए ,आप की दिल की खूबसूरती ही आप के चेहरे की खूबसूरती को सौ गुना बढ़ा देगी।
कभी ये नुस्खा भी आजमाएं, सबसे अलग और सबसे खूबसूरत बन जाए
अनामिका अनूप✍😊

Monday, 27 August 2018

ज़ीवन एक सीधी सड़क हो सकती है, परन्तु बिना उबड़ खाबड़ के नहीं।
यात्रा के कुछ पहलु सहज हो सकते है लेकिन आप को जागरूक और सतर्क रखने के लिए अस्त व्यस्त भी होगी, आप ज़ीवन यात्रा का आनंद ले,कल्पना करे आप सड़क के किनारे खड़े है और ज़ीवन के हर पल को यातायात के रूप में देखें।