कुछ लोगो को पढ़ा मैंने.. मनीषा के लिए कौन आवाज़ उठा रहा है कौन नही..इस बात पर मुद्दे बनाये जा रहे है..
लेकिन क्या होगा इनके बोलने से??
क्या बदल जायेगा??
ये बोलेंगें तो क्या रेप होना बंद हो जाएगा?
निर्भया गुनहगारों को फांसी हुई तो क्या रेप होना रुक गया या प्रियंका रेड्डी के गुनहगारों को पुलिसकर्मियों ने सीधे गोली मार दी..तो क्या सबक मिल गया ??
उस माँ से पूछो जो सारी जिंदगी ख़ुद को कोसती रहेगी..क्यों बेटी को जन्म दिया? क्यों जन्म लेते मार नही दिया..कम से कम मेरी बच्ची इस दरिन्दगी से तो बच जाती..
एक पिता की बेबसी, भाई बहनों के मन का डर..ये जरूर बढेगा..बातें हज़ार होंगी और ख़त्म हो जाएंगी..ऐसी ही निर्भया, प्रियंका, गुड़िया और मनीषा हैवानों के हाथों नोची जाएंगी..रोयेगा परिवार, न्याय की भीख मांगेगा एक परिवार..
कुछ लोग 2/3 दिन मोमबत्ती लिए चल लेंगे, दो चार सेल्फ़ी लिए घड़ियाली आंसू बहाए सोशल साइट्स पर पोस्ट कर देंगे, लेखनी के धनी लोग लंबी लंबी पोस्ट लिखेंगे, कुछ कविताएं तो कुछ कहानियां बुनी जाएंगी, फिल्में बनेगी, टीवी सीरियल बनेंगे, क्राइम पेट्रोल के एक दो एपिसोड तैयार होंगे..लोग देखेंगे, अदाकारी की तारीफें होंगी और आख़िर में अवार्ड ले कर आगे बढ़ जाएंगे..
रह जायेगा उस बेटी का परिवार..चला जायेगा कुछ साल पीछे..कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाएं, न्याय की भीख मांगते दर दर भटकेंगे..सरकार सत्ता में रहने के लिए कुछ पैसे दे कर इतिश्री कर लेंगी.. हो गया न्याय
यही होगा..सदियों से यही तो होता आया है
ना कल कुछ बदला था ना आज कुछ बदलेगा
..एक मरेगा दूसरा हैवान तैयार हो जाएगा..रक्तबीज की तरह है ऐसे मानसिक विकृति के लोग..ख़त्म नही होंगे..बल्कि एक के बाद एक जन्म लेंगे..
किस सरकार को दोष दें??
कौन है यहाँ दूध का धुला??
निर्भया के समय आप और कांग्रेस सरकार ने क्या किया या मनीषा के लिए भाजपा क्या कर लेंगी.. सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे है..
जो नेता आवाज़ उठाएंगे तो उनका स्वार्थ पहले होगा..
बुद्धिजीवी वर्ग मौसमी होते है, मौसम के हिसाब से कपड़े (सोच) बदलतें हैं..
फ़िर दोषी कौन??
दोषी ढूंढने निकलो तो सब से पहले अपने समाज़ पर नज़र डाल लो..ये सब सरकार की नही हमारे समाज़ की देन है..हम बड़ी आसानी से ऐसे कुकर्म, ऐसी हैवानियत के लिए सरकार नेताओं के मत्थे मढ़ कर ख़ुश हो लेते..3/4 पोस्ट कर देंगे..सोशल मीडिया पर चर्चा कर लेंगे लेकिन इस के जड़ को नष्ट करने के लिए कुछ नही करेंगे..
हमारे समाज़ में शुरू से लड़कियों को दबा कर रखा गया और लड़कों को सिर आंखों पर.. जिनकी सिर्फ़ बेटियां हुई तो पुत्र प्राप्ति के लिए बेटे की दूसरी शादी करा दी जाती थी..और ये आज भी होता है..डर है वंश ख़त्म हो जाएंगा..लड़कियां वंश आगे नही बढ़ाती लेकिन वंश उन्ही की कोख़ में पलता है..कितना हास्यस्पद है ये सोच....यह किस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था हैं?
लड़कियों को बचपन से सहमना सिखाया जाता है..दूसरे घर जाना है, घर की मान मर्यादा तुम्हारी हाथ मे है, बिटिया सबकी सुनना, पति परमेश्वर हैं, सास ससुर की हर आज्ञा का पालन करना तुम्हारा धर्म है? कम और धीमी आवाज़ में बात करनी है, ठहाके मार कर नही मुंह दबा कर हंसना है..
पति अगर नही हैं तो तुम्हें रंग बिरंगे कपड़ो से दूर रहना है, सजने संवरने का हक़ नही है क्योकि इससे पराये पुरूष के नज़रों में आ जाओगी..
इस तरह के कितने नियम पुरूष के लिए निर्धारित किये गए है ??
मुझे नही पता..अगर आप लोगो को पता है तो प्लीज़ मुझें जरूर बताएं..
बेटा गाली दे तो मर्द है, किसी को मार कर आये तो शेर है, लड़की को छेड़े तो..उमर ही ऐसी है, इस उम्र में ऐसा होता है..बेटा तो कुछ भी कर..तू तो वंश है तुम्हारे लिए कोई नियम नही है..एक तो तेरी बहकने की उम्र है दूसरा तू तो मर्द है..
एक लड़की आवाज़ उठाती है तो समाज़ लग जाता है उसके चरित्र की बखिया उधेड़ने ..चरित्रहीन है, लड़को को उंगलियों पर नचाती हैं, सब कुछ कर चुकी है अब चली है सती सावित्री बनने..ये टैग है बोल्ड लड़कियों के लिए
क्या नही लगता ऐसी सामाजिक व्यवस्थाओं में बदलाव लाया जाए..बेटियों को वही हक़ मिले जो बेटों को दिया जाता है..
बेटों को कहा जाय.."संस्कार ही तुम्हारी मर्दानगी हैं"
"लड़कियों को इज़्ज़त देने वाला मेरा शेर पुत्तर"
क्या एक माँ और पिता से यह नही कह सकतें
"उम्र कितनी भी हों बेटा..बहकने औऱ गुनाह करने पर तुम्हें सज़ा दिलाने के लिए हम स्वयं आगे आएंगे"..
सोच बदलने से ही बदलाव आएगा
और सोच को बदलना ही पड़ेगा
पितृसत्तात्मक प्रथा का अंत करना ही होगा
सर्वसामान्य प्रथा का प्रचलन हो
सब वर्ग सामान हो
बेटा बेटी में फ़र्क़ करना बंद करना होगा
तभी कुछ संभव है
ये सिस्टम..ये सरकार...ये नेता इसी समाज़ की देन है..ये नही बदलने वाले
बदलाव का बिगुल हमें बजाना है
बेटी को दुर्गा हमें बनाना होगा
रक्तबीज का संहार दुर्गा के हाथों ही होगा
नही तो तैयार रखों ख़ुद को..रक्तबीज के दूसरे तीसरे रूप के लिए और एक और बेटी की बलि के लिए
अनामिका अनूप
नोएडा
जब तक सों नही बदलेगी तब तक ऐसे हीं मनीषा मरती रहेगी
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